पितृ दोष का क्या असर होता है, इसके क्या उपाय किये जा सकते हैं?

पितृदोष के बारे में मार्कंडेय पुराण में विस्तार से बताया गया है कि जिस मानव युगल स्त्री पुरुष को पितृदोष लग जाता है उनके जीवन की गति प्रगति उत्तम गति सभी तरह से रुक जाती है । इसमें मेरा निजी अनुभव सहमति शामिल है मैं स्वयं पितृदोष से बुरी तरह प्रभावित पीड़ित रहा हूं । पितृदोष की विशेषता यह है कि यह जिस पर लग जाता है वंश बेल रुक जाती है शादी संबंध के बनने का प्रश्न ही नहीं होता अर्थात उत्तम पुत्र तो क्या अधम पुत्र की प्राप्ति और अधम पत्नी की प्राप्ती नहीं होती है ।इन पुत्र और पत्नी की भी प्राप्ती पितृ कृपा से ही संभव है । यदि पितृ रुष्ट हो जाय तो संतान शोक देखना /झेलना पड़ता है । उत्तम पुरुष तो क्या अधम पुरुष तक को पुत्र / पत्नी तक नसीब नहीं होता /होती है । वैध्व्य क्लेश रांड /रंडुआ/ क्लेश स्त्री / पुरुष तक को भुगतना पड़ता है । 

जीवन में राज सत्ता सुख, रोजगार, परिवार को अन्न व्यवस्था, खेती-बाड़ी पशु धन सभी पितरों के प्रभाव से, पितृ कृपा से प्राप्त होता है । जैसी जिस पर पितृ कृपा होती है उसकी सुख-समृद्धि पितृ जनों की कृपा दृष्टि पर निर्भर करती है। यदि पितरों की कृपा हो जाय तो असंभव कार्य भी संभव हो सकता है। पितृ कृपा के होते बलवान शत्रु का निर्बल मनुष्य पर वश नहीं चलता है। मेरा दोस्त कृष्ण मुरारी आनंद जब भी शत्रुओं से घिर गए तभी पित्रों ने सर्प रूप / सांड रूप / कुत्ता रूप से दोस्त की रक्षा की ,। सामान्य जीवन में मेरे दोस्त को पितरों ने कौआ /काक / कुत्ता रूप से शकुन देकर मेरे दोस्त को शत्रुओं के फंदे में पड़ने से बचाया । मेरे मातृकुल में पितृ पूजा पर विशेष ध्यान दिया जाता है । यदि पितृ कृपा /पित्रदोष के बारे में पूरी तरह से विस्तार में जानने की इच्छा है तो मार्कंडेय पुराण के मनु मनवंतर सर्ग में रौच्य मनु ,स्वारोचिष मनु आदि का अध्ययन करें और विधि-विधान से पितरों की पूजा करना सीख कर पितृ दोष से मुक्त होना/रहना सीखें , जिसमें स्पष्ठ लिखा है कि मनुष्य जाति में सर्वश्रेष्ठ मनु पद ( संविधान निर्माता )और इंद्र पद केवल पितरों की पूजा तृप्ति के प्रभाव से मिलता है । ईश्वर देवी देवता सुख-समृद्धि दे सकते हैं लेकिन मनु पद ( मानव विधान निर्माता विधायक सांसद पद ) इंद्र पद ( मानव समाज नियंता मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल, कुलपति जैसे विशिष्ट पद ) देने की सामर्थ्य केवल पितर गणों में ही होती है ।

युवा अवस्था में यदि पितृ रुष्ट हो जाय /पितृदोष लग जाय तो आजीवन कुंआरा रहना पड़ता है। शादी के बाद पितृदोष लग जाय तो संतान शोक देखना/झेलना पड़ता है पहले नंबर तो संतान नहीं होती हैं और यदि पैदा हो गई तो मरती जाती है । 15 वर्ष की आयु से पहले शैशवावस्था, बाल्यावस्था में संतान पूरी तरह से पितरों बड़ों के नियंत्रण में होती है । जीवित पितर माता पिता, दादी दादा, ताऊ ताई,चाचा चाची ,मामा मामी ,नाना, नानी कहे जाते हैं , तथा इनसे पूर्व के इनके पूर्वज जो मर गए हैं लेकिन उनको अभी तक दूसरा जन्म और शरीर नहीं मिला है । ऐसे में उनका लगाव बिना शरीर के होने पर भी अपनी जीवित पीढ़ियों के लोगों से बना रहता है । (शातातप स्मृति ग्रंथ के अनुसार ) संतान की प्राप्ति जीवन कमान /नियंत्रण पूरी तरह से पितृदोष /पितर कृपा पर आश्रित है राजसत्ता सुख रोजगार खेती-बाड़ी पशु धन पर पितरों का प्रभाव होता है ॥

समस्त ब्रह्माण्ड पितर गणों से आच्छादित है समस्त ब्रह्माण्ड में पितर विभिन्न रूपों में व्याप्त हैं पितरों की तीन मुख्य श्रेणियां हैं 

१ मूल /जड़ पितर जो मनुष्य की उत्पत्ति से पूर्व के हैं जैसे अपनी पीढ़ियों के पूर्व में मरे हुए लोग , जीवित लोगों में जन्म दाता , ज्ञान दाता, धन,अन्न दाता जीवन रक्षक श्रेणी के लोग

२ भुजपितर भाई सखा सहायक श्रेणी के लोग 

३ छत्र पितर जो दिखाई नहीं देते लेकिन उनकी छत्रछाया कृपा का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है जैसे राजा, सेना, राजकीय कर्मचारी लोग, जीवन में सेवा सफाई करने वाले सेवक श्रमिक पितर 

॥ मजा के साथ सजा और सुख के साथ दुःख जुड़े हुए हैं, सभी को मजा चाहिए ,सुख चाहिए लेकिन लेकिन सजा और दुख ये ना मिले या कम से कम मिले ,बिलकुल न मिले तो सबसे अच्छा , इनमें से जिवित पितरों  के प्रभाव से — माता पिता गुरु का ज्ञान , गुरु श्रेणी के चिकित्सक और वकील के ज्ञान निदान प्रभाव से दुःख और सजा कम से कमतर हो सकती हैं बिल्कुल समाप्त नहीं हो सकतीहैं 

॥ पितृ दोष पर आदमी तब सोचता है — जब कर्म करने से भी लेशमात्र कर्मफल प्राप्त नहीं होता है। कर्म निष्फल हो जाता है कर्मविपरीत फल प्राप्त होता है , तब आदमी का अपने ज्ञान से भ्रम टूटता है तब वह ज्ञान स्रोत पितरों की शरण में — जीवित पितरों के पास ज्ञान लेने को जाता है , और मरे पितरों को मनाने के लिए ; कृपा पाने के लिए पूजा पाठ की ओर अग्रसर /प्रेरित होता है । धर्म कर्म कांड स्रोत पंडित ब्राह्मणों संतकृपा की ओर रुख अपनाता है ।

जो धारणा पितरों के बारे में आज जनसामान्य की है वही धारणा 12 साल पहले मेरी भी थी। बार बार कर्म करते हुए फेल होने पर सोचने को बाध्य हुआ मेरे एक मित्र संजय को तीन पुत्रीयों के बाद भी पुत्र नहीं हुआ। 

तब मैं अपने मित्र के लिए आत्मचिंतन करने को बाध्य हुआ कि मेरे मित्र को कर्म का समग्र फल 60%पूरा का पूरा क्यों नहीं मिलता है। यह रहस्य तब समझ में आया जब मैंने मार्कंडेय पुराण पढ़ी ,जिसमें लिखा था — कि हम न कर्म करने में पूरी तरह से स्वतंत्र हैं, समर्थ्यवान हैं , न ही कर्मफल को पूरी तरह से 100% रुप में ग्रहण करने में समर्थ हैं 

॥ हम केवल सोचने में समर्थ हैं तब , यदि हमको सोचना आ जाय तो , तत्व ज्ञान हो जाए तब । अन्यथा हमारी सोच , हमारे विचारों पर भी दूसरे लोगों का प्रभाव होता है कारण कि हम अधिकतर दूसरे लोगों के विचार धारण किया करते हैं बोला करते हैं शिक्षा के , संस्कार के द्वारा 

॥ समर्थकों अपने निजी अति निकट लोगों के साथ लगने के कारण, हमको प्राप्त कर्मफल अपने समर्थकों को बाटना /देना पड़ता है, नहीं तो वे अपने छलबल से , संवैधानिक व्यवस्था अधिकार से ले लेते हैं , क्योंकि हम भी एक प्राकृतिक, मानवीय सिस्टम /तंत्र में फंसकर अपना जीवन जीते हैं।यह सिस्टम नाम पितरों की व्यवस्था का है । जिस पर पितृ मूल /जड़ (संतति शिष्य मानस पुत्र संतान अंगरस पुत्र ) , भुजा /समान रूप से सहायक मित्र /बंधु भाई , छत्रछाया पितर माता पिता गुरु राजा आदि बड़े ज्ञानी ध्यानी जन रुप से आच्छादित हैं ।

पितृदोष के कारण

मृतक माता पिता आचार्य गुरु का प्रेतकर्म मृतक संस्कार विधि विधान से धर्मानुसार न करने पर पितृ दोष लग जाता है । जिनकी , मृत्यु के बाद पीढ़ी अंशज वंशज के अपनी सेवा सामर्थ्य के अनुसार श्रृद्धा श्राद्ध पुण्यतिथि न करने पर, जिसमें पंडित ब्राहमण कुल जन एकत्र हो कर अपने पूर्वजों पितरों को श्रृद्धा विश्वास सम्मान नहीं दिया करते हैं । 

श्राद पर्व/पितर पक्ष में नवरात्रि से पहले पक्ष में 

॥ पितृ श्राद्ध के दिन श्राद करने से पहले और श्राद करने के बाद पत्नी से मैथुन करने पर या पत्नी विक्ल्प वैश्या स्त्री, या पशु आदिओं से मैथुन करने पर पितृ दोष लगता है 

॥ गाय देवगृही है कुतिया देवसूचक है , पत्नी /पति से किसी भी समय काल, किसी भी मास किसी भी समय में मुखमैथुन करने पर पितृ दोष लगता है , कारण कि पति-पत्नियों के मुख में पितृ व देवगण निवास करते हैं जो मुख में वीर्य ग्रहणशीलता से रुष्ट होकर पितृ दोष लगा देते हैं 

॥ वजह किसी भी अनिष्टकारी वैदिक अनुष्ठान में वीर्य की आहुति /बलि निषेध वर्जित है , वीर्य देवताओं और पितरों की भोग सामग्री /ग्राहय पदार्थ नहीं है। मनुष्य के द्वारा मनुष्य का वीर्य पान अन्य पशुओं का मुर्गा का वीर्यपान/वीर्य भक्षण करने पर पितर दोष लग जाता है । माता पिता गुरु को मारने पीटने ताड़न करने पर पितृ दोष अवश्य लगता है क्योंकि ये प्रत्यक्ष में जीवित पितृ हैं। जिनका स्थान प्रत्यक्ष जगत में अप्रत्यक्ष अदृश्य भगवान देवी देवताओं से ऊंचा माना /समझा जाता है । 

अगम्य स्त्रियां जैसे अति उच्च कुल की स्त्रीयां ,अति निम्न कुल की सेविका वर्णा स्त्रियां , पितृ कोटि की स्त्रियां /पुरुष , जैसे माता पिता या माता पिता तुल्य ताई, चाची, फूआ, मामी, मौसी, गुरु पत्नी, गुरुबहिन आदिओं से सहमति से या बलात्कार मैथुन करने पर पितृदोष अवश्य लग जाता है । लोकनिंदा कर्म से पितरों के रुष्ट होने पर पितृ दोष लगता है।

अकारण श्रेष्ठ शान्त चित्त के सज्जन व्यक्ति को अशांत करने क्लेश पहुंचाने पर, शिशु बालक के साथ अपघात , पातकी कर्म करने पर , घायल की मदद न करने पर , बालिकाओं महिलाओं के सच्चे आंसूओं की अनदेखी करने पर , आत्मिक शक्ति वालों की बद्दूआ लग जाने पर , किसी का अकारण दिल दुखाने पर पितृ दोष लगता है। यदि ये आत्मावान सीधे सच्चे अंतर्मन वाले अहिंसक स्वभाव के हैं ।

—कुछ मैथुन निषेध तिथियां जैसे आषाढ़ मास में अमावस्या और शुक्लपक्ष की पढ़वा/प्रथमा, देवशयनी भड़रिया नौंवी नवमीं कार्तिक मास की देवोत्थान एकादशी, देव दीपदायिनी पूर्णमासी कार्तिकेय जन्म तिथि, कतिकी, देवपूजा पितृ पूजा ‌ न करने पर पितृ दोष लगता है । उपरोक्त इन तिथियों में मैथुन निषेध दिवस होता है । घर में सूतक उपस्थित होने पर जैसे बच्चा पैदा होने पर, या किसी के मर जाने पर, मृतक अन्त्योषठी क्रिया किये बिना सूतक पातक अपवित्र काल में, मैथुन करने पर पितृदोष लग जाता है। सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण के मौके पर मैथुन करने से पितृ दोष लगता है 

॥ बिना देवपूजा पितृ पूजा ग्रह शुद्धि पर्व के मैथुन करने पर पितृदोष लग जाता है ।

सभी महापात की अपराध जो अक्षम्य कोटि हैं उन सभी से पितृदोष लग जाया करता है ।जिन अपराध कर्मोकी समाज के पितर माता पिता गुरु निंदा/ भर्त्सना करते हैं निंदा करते हैं उन सभी निंदनीय कृत्य के करने पर पितृदोष लग जाता है ।

अक्सर दूषित मंगली पर प्रथम,दितीय बारहवें भाव में पिता से माता से संतान से वैर पड़ जाने पर , पितृदोष उत्पन्न हो जाता है ,, जिसे पूर्व जन्म का वैर कहते हैं जिसकी अति होने पर मां बाप अपने बच्चों का अहित करने की कोशिश/सोचने लगते हैं तो संतान भी मां बाप से शत्रुओं जैसा अलौकिक व्यवहार करने लगती हैं । मां बाप के उग्र, दुष्ट प्रभाव से उनकी संतान मरने लगती है तो संतान के दूष्टता प्रभाव से मां बाप की संतान को जन्म देने के बाद शीघ्र मृत्यु हो जाती है।यह भी पितृदोष का ज्योतिषीय नतीजा होता है , जैसा तुलसीदास के साथ हुआ था । दूषित राहुक पर उग्र स्वभाव के कारण उज्जड /ब्रात्य व्यवहार करने पर पितृदोष आसानी से लग जाया करता है ॥

शिशु हत्या ,बाल स्त्रियां , कन्या स्त्रियां ,पत्नी हत्या , भ्राता हत्या , कुलबंधुओं की हत्या , स्त्रियों की हत्या, गुरु हत्या , पालतू पशु गाय , घोड़ा वाहन पशु की हत्या, गृह हत्या अकारण अपना या दूसरे के घर को तोड़ फोड़ करना जिसमें लोग रह रहे हैं वह गृह हत्या कही गई है जिसे करने पर पितृदोष लग जाता है। खड़े खेत की खड़ी फसल समय से पहले उजाड़ने पर पितृदोष लग जाता है ।हत्याखोरी, बलात्कार , भूमि अधिग्रहण/अपहरण , दूसरे की आजीविका/रोजगार को संकटग्रस्त करने पर पितृदोष लग जाता है क्योंकि इन महापातकी कर्मों से जीवित पितर लोग बद्दुआएं देने लगते हैं अपयश कारणों से ।

गर्भ पात कराने पर , अपने हाथों से अपनी संतान को नष्ट करना /मारना , भ्रूणहत्या करने पर पितृदोष लगने की गारंटी है । इसका उल्लेख मार्कंडेय पुराण के प्रारंभ में पक्षी राज गरुड़ की माता विनीता को अपना पहला अंडा स्वयं समय से पहले फोड़ने पर , संतान को समय पूर्व देखने की उत्सुकता /उत्कंठा के कारण विनीता को दीर्घ काल तक बन्ध्या रहने की सजा मिली , कि उनको दूसरे पुत्र गरुड़ की प्राप्ति कठिनाई से हुई । अतः गर्भ पात के नैतिक सामाजिक, राष्ट्रीय अपराध से बचें । इससे पितर दोष अवश्य लगता है । इसमें मेरा निजी अनुभव सहमति शामिल है जो स्त्रियां अधिकतर गर्भपात कराती हैं ,जो आने वाले बच्चे का तिरस्कार करतीं हैं वे अपनी संतान की हत्यारी स्त्रियां न तो अपने पति की प्रिया बन पाती हैं और न ही श्रैष्ठ संतान की माता बनने का सपना पूरा कर पाती हैं ( महाभारत ग्रंथ से ) संतान प्राप्ति एक ईश्वर का उपहार है जो माता प्रकृति की कृपा से प्राप्त होता है। अतः गर्भ पात से बचें पितर कोप दृष्टि से बचें, पितृदोष से बचें । पितर कृपा प्राकृतिक रुप से ईश्वरीय वरदान प्राप्त करें ॥

पितरधन माता पिता गुरु का संचित धन अपहरण /चोरी करने से पितृदोष लग जाता है। समाज धन , देव श्रेणी /कोटि समान अति सज्जन गरीब का धन , मंदिर/मस्जिद का धन , अस्पताल का धन , शमशान घाट का धन ,अपहरण कर ने चोरी करने वाले लोगों को पितृदोष लग जाता है । विवाह शादी के अवसर पर कन्या का धन आभूषण अपहरण चोरी करने से पितृदोष लग जाता है क्योंकि इस समय के इस चौर्य कर्म की पितर श्रैणी ,वह समाज के सभी लोग निंदा /बुराई करते हैं , जबकि कन्या अपने निजी धन की रक्षा से दूर रहती है। माता का धन , बहिन का धन , पुत्री का धन आभूषण अपहरण चोरी करने वाला, इनको धन देकर कहने के बाद धन न देने पर पितृदोष लग जाता है ।धन पर स्त्री का जन्मसिद्ध अधिकार होता है जो स्त्रीधन की अमानत में ख्यानत का अहित करता है उसकी समाज लोग निंदा करते हैं जिससे पितरदोष लग जाता है ॥

ये सभी कारण जो लिखे हैं वे शातातप स्मृति, मनु स्मृति, वृहस्पति स्मृति, शुक्राचार्य स्मृति,और मार्कंडेय पुराण, गरुण पुराण, से अध्ययन किया है और निजी अनुभव सहमति से पुष्टि करता हूं। मैं इनमें से अधिकांश से प्रभावित हूं।जब मेरे घर तीन पुत्रियां पैदा हो गई थी , पुत्र नहीं हुआ था तब दिल्ली में कृष्णानगर के मित्र ज्योतिषी सतीश रुस्तगी ने मुझे पितृदोष बताया था । मैंने पितृदोष का ज्योतिषीय शास्त्रीय स्मृतिय अध्ययन किया ,परन्तु असली समस्या का हल मार्कंडेय पुराण के मुताबिक रौच्य मनु सर्ग से हुआ जिसमें पितर उपासना स्तुति व्यवहार परिवर्तन शोधन से पितृदोष निवारण का विवरण है। जिसके पालन करने से मुझे तीन पुत्रियों के बाद पुत्र पितर दोष शमन करने के बाद पितृकृपा से पुत्र 10 /01/98को प्राप्त हुआ था ।

पितर दोष का अर्थ /मतलब है :::पूर्वज श्रेणी के लोग जैसे माता पिता गुरु चाचा,ताऊ ,मामा ,फूफा ,मौसा , बड़े संत स्वभाव के सज्जन लोग, साधु संन्यासी लोग , सत्यनिष्ठ ब्राह्मण लोग जो युधिष्ठिर मति , हरिश्चंद्र मति के होते हैं जो दुष्ट या बुरा बर्ताव/व्यवहार असामाजिक व्यवहार करने वाले लोगों को डराने-धमकाने वाले अभिशापित कथन /चेतावनी कथन कहकर उनका जीवन अभिशप्त कर देते हैं या बुरे व्यवहार से रुष्ट नाराज होकर शाप कथन कर दिया करते हैं । और अभिशापित कथन /शाप फलित होने लगते हैं । जिससे वर्तमान, अभिशापित , भविष्य की पीढ़ियों का जीवन दुख दरिद्रता पूर्ण संकटग्रस्त हो जाता है । इसे पितर दोष , पितृदोष कहते हैं । माता पिता गुरु के शाप /अनिष्ट कारी कथन करने से पितृदोष लगता है ।और पितर श्रैणी /कोटि के लोगों के शापित करने के प्रभाव से पितर दोष लगता है ।

पितृदोष का मतलब है मूल जड़ पितर माता पिता गुरु के द्वारा रुष्ट होने पर दिया गया शाप कथन ,, जो वे अपनी संतति के मर्यादा हीन , कुल हीन, परिवार हीन , समाज हीन ,जाति हीन , धर्म हीन आचरण हीन अलौकिक व्यवहार करने पर अपनी संतति, पुत्र, पुत्री , शिष्य को उनके अंतर्मन को पीड़ा पहुंचाने पर शाप और चेतावनी कथन कहकर दिया करते हैं । जन सामान्य में से विशेष आत्मावान /शुद्ध अंतर्मन वाले पितरों के कोपदोष में भी यही सब वर्णित है , फर्क सिर्फ ज्ञान संज्ञान को लेकर है । पितृ पीढ़ी के जन और पितर पीढ़ी के जनों से ब्रहम ज्ञान /श्रेष्ठ ज्ञान / सत्यज्ञान /उत्तम ज्ञान /दुआ लेने बजाय दूषित पीढ़ी पुत्र पुत्री शिष्य भ्रम ज्ञान /अश्रेष्ठ (मलिन, पतित गंदा ) / असत्य ज्ञान /अधम गति ज्ञान / विपरीत ज्ञान,अज्ञान /बद्दुआ के कारण निरंतर आपत्तिजनक दुखदाई स्थितियों में फंसती जाती है । जबकि पितृ /पितर कृपा सत् ज्ञान / दुआ प्राप्त होने पर वह उन्हीं आपदा जाती परिस्थितियों से निकलती /उबरति /प्रगति करती चली जाती है ।

हमारा जीवन सदैव पितृदोष/पितरदोष /बद्दुआ / शापित कथन और पितृकृपा /पितर कृपा /दुआ / आशीर्वाद कथन के मध्य प्रतिष्ठित स्थापित रहता है ।। जब हम पितृकृपा ,पितरकृपा , दुआ , वरदान का प्रभाव कम /घटत में और पितृ दोष, पितर दोष बदुआ , शाप का प्रभाव अधिक /बढ़कर होता है तो हम अधोगति नष्टता विनाश/पतन की ओर चलने लगते हैं ।।

परन्तु जब इसके विपरीत होता है पितृकृपा , पितरकृपा , दुआ , वरदान /आशीर्वाद का प्रभाव अधिक /बढ़त में और पितृदोष ,पितर दोष ,बद्दुआ , शापित कथन का प्रभाव कम /घटत में होता है ,तो हम ऊर्धवगति ,प्रगति /निर्माण की ओर चलने लगते हैं ।।

जब पितृदोष पितरदोष बद्दुआ शापित कथन का परिमाण ==. पितृ कृपा पितरकृपा दुआ आशीर्वाद वरदान का परिमाण समान बना रहता है तो हम सम्यक स्थित में ,# अधर स्थिति में , जैसे थे वैसे ही बने रहते हैं ।

उदाहरण # १० वीं में फेल होने पर मेरे मामा ने अपने गुरु पर हाथ उठाया था तब उनके गुरु ने रोते हुए रुष्ट होकर कहा था : - बच्चे अब तुम जितना पढ़ने थे पढ़ चुके अब दसवीं पास करके दिखा देना जाओ मैं तुमको ये शाप देता हूं अब तुम दसवीं पास नहीं कर सकोगे और हुआ भी ऐसा ही ;; मेरे मामा साधन समर्थ समृद्ध होने पर भी दसवीं कक्षा पास नहीं कर सके थे , तव से हम सभी मातृ कुल और पितर कुल के लोग गुरु जनों से बहुत डरते हैं और गुरु जनों के शाप देने से बचते हैं । मेरे पिता जी को उनके ताऊजी ने शापित कर दिया था धोखाधड़ी से ५० बीघा जमीन हड़पने पर ,नतीजा , पिताजी के साथ हम सभी का जीवन ,मेरा बचपन भी समर्थ होने पर निर्धनता , दरिद्रता , गरीबी में व्यतीत हुआ ।आज भी पिताजी अपमानित जीवन जी रहे हैं 50 बीघा जमीन का त्याग /दान करने के बाद भी उनका कुल में सम्मान नहीं है । कई उदाहरण मेरे पास है पितर दोष के , मेरे पड़ोस में एक कायस्थ सक्सैना अभिशप्त परिवार था , वे लोग अब बुलंदशहर पलायन कर चुके हैं । उनकी संपत्ति यक्ष संपत्ति बन चुकी है पितर दोष प्रभाव से । मेरे पास अन्य कथा संकलन है पितृदोष पितरदोष का प्रमाणित नाहर सिंह ओढ़ , पंडाजी परिवार का।

प्राय पितर श्रेणी के जीवित लोग या मृत लोग जो निरंतर अपनी भविष्य की पीढ़ियों की हितकामना करते रहते हैं वे अपनी विपरीत मति /गति से चलने वाले अपने अंशज वंशज लोगों के कुटिल दुष्ट विपरीत विरोधी विधर्मी आचरण व्यवहार से रुष्ट /नाराज होकर अपने अंशज वंशज को दूसरे का मानने/समझने लगते हैं ।। पितर बहुत ही सीधे सच्चे मन वाले होते हैं , उन्हें अपनी अंशज वंशज के लोगों के धर्म विरुद्ध ,जाति विरुद्ध , कुलविरुद्ध कर्म कर्त्ताओं को देखकर अपनी कर्म श्रृंखला के नष्ट हो जाने फिक्र होती है जिससे वे अपने वंश बेल /भावी पीढ़ी अंशज वंशज के लोगों की पहले मानसिक क्षमताओं में फिर शारीरिक क्षमता ओं में कमी करने लगते हैं जिससे पहले परिवार में निर्धनता /गरीबी /साधनहीनता आने लगती है । यह पितरों की अपनी पीढ़ी को चुनौती चेतावनी है कि वह अपनी सोच व्यवहार सुधार कर अपने जीवन को ज्यादा से ज्यादा सामाजिक कुलीन बनाएं , सामाजिक परिवारिक आर्थिक व्यावसायिक कुरीतियों अपराधियों से बचें /दूर रहें ।। परन्तु यदि पितरों की भावी पीढ़ियों के लोगों की सोच व्यवहार में बदलाव /परिवर्तन नहीं आता है वे परिवारिक सामाजिक कुलीन दुष्टता पर अमादा /बने रहते हैं तो वे अपने वंश कुल जाति विरुद्ध आचरण व्यवहार करने वाले अपने अंशज वंशज लोगों को जीवन संकटग्रस्त /परेशानियों से युक्त कर दिया करते हैं ।। मनुष्यों की पितर क्षमताओं को बाधित /नष्ट कर दिया करते हैं जिससे स्त्री हो या पुरुष हो पितृदोष लग जाने पर प्रज्या हीन (संतान हीन ) नपुंसक होने लगते हैं । पुरुष में शुक्र फर्टिलाइजेशन के योग्य नहीं रहता है स्त्रिओं में अन्य जनन विकार उत्पन्न हो जाते हैं। पितरों से संरक्षित न होने पर संतान गर्भ में प्रतिष्ठित /स्थापित नहीं होती , स्थापित हो गयी तो प्रसव पूर्व या प्रसव पशचात नहीं बचती है ।( ( शातातप स्मृति से)

पितरों को संगठनात्मक संरचना को पितर व्यवस्था / पित्तरी कहते हैं इनका उद्भव निवास ,निकास उत्तर दिशा में प्रतिष्ठित ह । पितरों की प्रयाण प्रतिष्ठा भवन के उत्तर / पूर्व दिशा में कराई जाती है। पित्तरियां देववर्णा , असुरवर्णा ,राक्षसवर्णा , कुलदेवी , अपने अपने जाति धर्म कुल वंश के अनुसार अलग-अलग होती हैं इनका विशेष विवरण दुर्गा सप्तशति में मिलता है वह भी मार्कंडेय पुराण का एक भाग /अंश है । अपराधी कुल की दानव राक्षसों की पित्तरियां अपराधी सोच व्यवहार वाली होती हैं जो अपने अपराधी अंशजों वंशजों को अपराध करते समय रक्षा सुरक्षा करतीं हैं जिनके प्रभाव से अपराधी लोग जब उनको मनाकर पूजा पाठ तृप्ति करके अपराध करते हैं तो आसानी से पकड़ में नहीं आते हैं। परन्तु अति अनैतिक हिंसा अपराधी पित्तरियों को भी अप्रिय है । जिससे एक निश्चित सीमा बाद वो अपने अपराधी अंशजों वंशजों को त्याग दिया करतीं हैं । अति अधिक अपराध के पश्चात अपराधी पकड़े दंडित किए जाते हैं ॥ देवकुल की पित्तरियां उत्तम /श्रेष्ठ सर्वभाव की होती हैं जो अपने पूजक कुल की निरंतर मदद करने में लगी रहती हैं जिनके प्रभाव से देवकुल में उत्पन्न कम बुद्धीवाला , मंदबुद्धि मनुष्य भी आसानी से मनुष्यों और पशुओं से हिंसित नहीं होता है । मानव कुल की पित्तरियां मानवीय स्वभाव व्यवहार वाली होती हैं जिनका उपयोग मनुष्य इनको नियंत्रित करके अपना भला और दूसरों का बुरा करने में सामर्थ्य वान हो जाता है ।इनका उपयोग तांत्रिक कार्यों में किया जाता है।इन पित्तरियों को नियंत्रित करके मनुष्य सिद्ध पुरुष बनते हैं। लेकिन यह कार्य पित्तरियों को नियंत्रित करना साधना करना इतना आसान भी नहीं है कि मैंने लिख दिया और पित्तरी सिद्ध नियंत्रित हो गयी । कितने ही लोग इन पित्तरियों को सिद्ध करने साधने के दौरान पागल हो गये , विक्षिप्त हो गये ,मर गये । अतः अति गरीब लालची , भीरू डर्रू इन पित्तरियों के संधान में अपना समय नष्ठ न करें ॥ धर्म कर्म पूर्वक अपनी सामाजिक परिवारिक आर्थिक संतुष्ट ज़िन्दगी जीने की सोच बनाएं । ये पितर और पित्रियां अति बलवान होती हैं, जो ईश्वरीय नियंत्रण में रहकर प्रकृति में सक्रिय भूमिका में अपना कार्य करती रहती हैं।देव पित्तरों को फरिश्ते भी कहा जाता है।और असुर राक्षस पितरों को शैतान /बुरी आत्मा /ब्रह्म राक्षस /महाप्रेत आदि नामों से जाना जाता है। अधिकांश पित्तरिओं का ब्यौरा दुर्गा सप्तशती में काल की वंशावली में पढ़ने पर मिलेगा ।

अभी तक सभी ने यही पढ़ा है कि माता पिता गुरु जनों के ऋण से उऋण /मुक्त नहीं मिलती है तो इसका जवाब भी मार्कंडेय पुराण में वर्णित है मार्कंडेय पुराण के लेखक जैमिनी ऋषि ने बताया कि रौच्य सर्ग में रौच्य मनु के पिता को उनके पितरों ने बताया मां का ऋण पुत्री के लालन-पालन पोषण शादी विवाह करने से , पिता का ऋण पुत्र के लालन-पालन पोषण शादी विवाह करने से और गुरु का ऋण शिष्य को ज्ञान देने पर उतर जाता है ।

इसकी व्याख्या :- मां का ऋण पुत्री के द्वारा उतरता है इसके लिए यदि अपने घर में लड़की पैदा न हो तो किसी दूसरे मनुष्य की लड़की गोद लेकर जिस परिवार में लड़कियां ज्यादा है और परिवार के मुखिया की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है तो एक या एक से अधिक की शादी करे या बेटी की शादी में सहयोग करें । विशेष कर अनाथ लड़कियों की शादी , विधवा स्त्री की बेटी की शादी में सहयोग करे । उसका पालन पोषण शादी विवाह करे इतना न हो सके तो किसी भी परिवार कुल वंश जाति वर्ग वर्ण धर्म की कन्या का विवाह करे , यदि शादी विवाह करने में समर्थ न हो तो दूसरों की लड़की के शादी विवाह में सहयोग करें आंशिक आर्थिक धनदान से श्रमदान से बरात के अतिथि सत्कार करने पर ,बड़े सामाजिक कार्यों में सहयोग करने से पितृ दोष का प्रभाव कम हो जाता है ।

यदि लड़की की शादी में सहयोग संभव नहीं है तो कभी भी किसी भी लड़की की शादी विवाह में अड़चन/बाधा पैदा न करें ,खोटी लगाकर किसी भी बेटी के शादी संबंध नहीं तुड़वायें ,ना शादी विवाह संबंध विच्छेद /तलाक में सहयोग करे । इससे प्रज्या धर्म में बाधा डालने का दोषी होने से पितर दोष लगता है ।। लड़की और उसके माता-पिता का परिवार समाज शादी विच्छेद कराने वाले खुटिया को मन से /दिल से भारी बद्दुआ देते हैं ,जिससे पितर दोष लग जाता है।मेरे गांव में एक ब्राह्मण व्यक्ति यह निंंदित कर्म अकारण रूचि से स्वभावतः करता था आज उसकी संतान समाज में उपेक्षित है अपने पिता के निंदनीय व्यवहार से ।

पिता के ऋण से मुक्ति /उऋण होने के लिए पुत्र का होना आवश्यक है , इसके लिए मनुस्मृति में २५तरह तरह के पुत्रों को वैध माना गया है जैसे निजी औरस /अंगरस पुत्र न होने पर उसके स्थान पर दत्तक पुत्र ,क्रय /क्रीत पुत्र कनीन सहोढ़ आदि मनुस्मृति के अनुसार मानव समाज में किसी भी जाति में , किसी भी कुल वंश में पैदा होने वाला कोई भी पुत्र पुत्री अवैध /नाजायज नहीं है , सभी जीव माता-पिता के संयोग से पैदा होते हैं ऐसे में जिस का भी माता या पिता मानहानि के भय से ,निर्धन होने से ,भीरू होने से अपनी विवाह शादी पूर्व की उत्पन्न संतान को नहीं अपनाया करते हैं उसे अपने जीते-जी अकारण अकाल मौत मरने को बाध्य करते हैं तो उनको भी पितर दोष लगता है । अतः पिता के ऋण से मुक्त /उऋण होने के लिए पुत्र का लालन-पालन पोषण शादी विवाह करने पर मनुष्य को अपने पिता के ऋण से मुक्ति मिलती है। चाहे वह पुत्र उसका औरस - अंगिरास पुत्र ना हो , करके - उसका वह पुत्र किसी भी अन्य प्रकार की युक्ति से प्राप्त किया गया पुत्र हो अर्थात पिता बनने के लिए पुत्र को जन्म देना उतना आवश्यक नहीं है,, जितना आवश्यक है पुत्र का पालन पोषण या परवरिश करना ही - एक मनुष्य को सच्चे मायने में पिता पद की उपलब्धि कराता है ।

गुरु के ऋण से मुक्त होने के लिए मनुष्य को गुरु धर्म कर्म करना चाहिए, इसके लिए पहले तो अपनी संतान पुत्र पुत्री को समाज संस्कृति की उत्कृष्ट शिक्षा दिलाएं। पुत्र पुत्री की शिक्षा में भेद भाव न करें जैसे पुत्र को उत्तम शिक्षा दिलाएं और पुत्री को अधम /निम्न कोटि शिक्षा दिलाएं या पुत्री को अपने समाज प्रतिष्ठा हानि के भय से अच्छी शिक्षा न दिलाए । जो व्यक्ति अपनी संतान पुत्र और पुत्री की शिक्षा में भेद भाव करता है उसे समाज का सृष्टि सृजन का सबसे भयंकर कोटि का पितृदोष लगता है । कारण शादी के बाद बेटी अशिक्षा ,गलत शिक्षा , निम्न कोटि शिक्षा से जब भी ससुराल में बार बार क्लेशित दुखी होती है और भाई बहन की आपत्ति काल में मदद नहीं करता है तो बेटी अपने माता-पिता को दिल से बद्दुआ देती है जो उसके पूरक भाई पर पड़ती है । अपने पुत्र पुत्री को शिक्षित करने के बाद जो अतिरिक्त धन बचता है मनुष्य को चाहिए कि वह इस धन से दूसरे निर्धन गरीब लोग के बच्चों को शिक्षित कराने में समाज संस्कृति का हित सहयोग करे । ज्ञान दाता संस्थाओं को समर्थ के अनुसार दान दें ,समय बचे तो गरीब निर्धन लोगों के बच्चों को पढ़ाया करें, या उनको पढ़ने लिखने में सहायक सहयोग कापी किताब, पैन पैन्सिल बैग वर्दियाँँ /गणवेश, गमन/मार्ग व्यय या मदद दें । यदि किसी छात्र को विद्यालय पहुंचने में असुविधा /देरी हो रही है तो उसकी विद्यालय पहुंचने में मदद करें ।उपरोक्त सभी तरह से शिक्षा और छात्रों की गुरु जनों की मदद करनेवाला गुरु ऋण से मुक्त होता है ।गुरु द्वारा लगा भयंकरतम पितरदोष का प्रभाव कम होने लगता है ।

गुरु के द्वारा लगे पितरदोष को लोग हल्के मेंं लेते हैं गौर नहीं करते हैं लेकिन मेरे विचार से यह सबसे भयानक पितरदोष होता है जो मनुष्य के पढ़े लिखे ज्ञान प्राप्त होने पर भी उसे निकम्मा निठल्ला खड़ूस ,आलसी ,लालची ,विवेकहीन ,बना कर उसे अपमान और निरधनता गर्त में आजीवन डुबाकर रखता है ।माता जनित मातृकादोष का निदान ,और पिता पितरकोटि प्रदत्त पितरदोष का निदान गुरु करने में समर्थ होता है ।।लेकिन गुरु प्रदत्त पितरदोष का निदान तो सृष्टि ज्ञान देवता ब्रह्मा के वश क्षेत्र से बाहर है ।

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