Mission Chandrayaan - 2 | मिशन चंद्रयान - 2

भारत इतिहास रचने से दो क़दम दूर रह गया। अगर सब कुछ ठीक रहता तो भारत दुनिया का पहला देश बन जाता जिसका अंतरिक्षयान चन्द्रमा की सतह के दक्षिण ध्रुव के क़रीब उतरता।

इससे पहले अमरीका, रूस और चीन ने चन्द्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैन्डिंग करवाई थी लेकिन दक्षिण ध्रुव पर नहीं. कहा जा रहा था कि दक्षिण ध्रुव पर जाना बहुत जटिल था इसलिए भी भारत का मून मिशन चन्द्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर दूर रह गया।

चंद्रयान-2 जब चंद्रमा की सतह पर उतरने ही वाला था कि लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया।


प्रधानमंत्री मोदी भी इस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनने के लिए इसरो मुख्यालय बेंगलुरू पहुंचे थे। लेकिन आख़िरी पल में चंद्रयान-2 का 47 दिनों का सफ़र अधूरा रह गया।

क्या इसरो की यह हार है या इस हार में भी जीत छुपी है? आख़िर चंद्रयान-2 की 47 दिनों की यात्रा अधूरी आख़िरी पलों में क्यों रह गई? क्या कोई तकनीकी खामी थी?
आख़िरी पलों में विक्रम लैंडर का संपर्क ग्राउंड स्टेशन से टूट गया। इसरो के चेयरमैन डॉ के सिवन ने बताया कि जब इसरो का विक्रम लैंडर 2.1 किलोमीटर चाँद की सतह से दूर था, तभी ग्राउंट स्टेशन से संपर्क टूट गया।
विक्रम लैंडर से भले निराशा मिली है लेकिन यह मिशन नाकाम नहीं रहा है, क्योंकि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चाँद की कक्षा में अपना काम कर रहा है। इस ऑर्बिटर में कई साइंटिफिक उपकरण हैं और अच्छे से काम कर रहे हैं। विक्रम लैन्डर और प्रज्ञान रोवर का प्रयोग था और इसमें ज़रूर झटका लगा है।

इस हार में जीत भी है! ऑर्बिटर भारत ने पहले भी पहुंचाया था लेकिन इस बार का ऑर्बिटर ज़्यादा आधुनिक है। चंद्रयान-1 के ऑर्बिटर से चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर ज़्यादा आधुनिक और साइंटिफिक उपकरणों से लैस है।


विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर का प्रयोग भारत के लिए पहली बार था और उस दिन डॉ सिवन ने कहा भी था कि इसके आख़िरी 15 मिनट दहशत के होंगे। यह एक प्रयोग था और इसमें झटका लगा है। ज़ाहिर है हर प्रयोग कामयाब नहीं होते।

जैसा कि मेरा अनुमान है कि शुक्रवार की रात 1.40 बजे विक्रम लैंडर ने चाँद की सतह पर उतरना शुरू किया था और क़रीब 2.51 के आसपास संपर्क टूट गया। यह सही बात है कि चाँद सतह के दक्षिणी ध्रुव पर कोई भी रोबोटिक लैंडर नहीं उतर पाया है।

लेकिन इसरो के चेयरमैन डॉ के सिवन ने बताया था कि दक्षिणी ध्रुव पर उतरना हो या इक्वोटेरिल प्लेन पर उतरना हो या नॉर्दन में उतरना हो सबमें मुश्किल एक ही हैं। इसरो के चेयरमैन ने साफ़ कहा था कि दक्षिणी ध्रुव हो या कोई और ध्रुव सबमें उतनी ही चुनौतियां थीं।
ये बिल्कुल सही बात है कि चंद्रयान-2 को बिल्कुल नई जगह पर भेजा गया था ताकि नई चीज़ें सामने आएं। पुरानी जगह पर जाने का कोई फ़ायदा नहीं था इसलिए नई जगह चुनी गई थी।

ऑर्बिटर तो काम कर रहा है। चाँद पर पानी की खोज भारत का मुख्य लक्ष्य था और वो काम ऑर्बिटर कर रहा है। भविष्य में इसका डेटा ज़रूर आएगा।

लैंडर विक्रम मुख्य रूप से चाँद की सतह पर जाकर वहाँ का विश्लेषण करने वाला था। वो अब नहीं हो पाएगा। वहाँ की चट्टान का विश्लेषण करना था वो अब नहीं हो पाएगा। विक्रम और प्रज्ञान से चाँद की सतह की सेल्फी आती और दुनिया देखती, अब वो संभव नहीं है. विक्रम और प्रज्ञान एक दूसरे की सेल्फी भेजते, अब वो नहीं हो पाएगा।


यह एक साइंटिफिक मिशन था और इसे बनने में 11 साल लगे थे। इसका ऑर्बिटर सफल रहा और लैंडर, रोवर असफल रहे। इस असफलता से इसरो पीछे नहीं जाएगा और प्रधानमंत्री मोदी ने भी यही बात दोहराई है। इसरो पहले समझने की कोशिश करेगा कि क्या हुआ है, उसके बाद अगले क़दम पर फ़ैसला करेगा।
अमरीका, रूस और चीन को चाँद की सतह पर सॉफ्ट लैन्डिंग में सफलता मिली है। भारत उस रात इससे चूक गया। सॉफ्ट लैन्डिंग का मतलब होता है कि आप किसी भी सैटलाइट को किसी लैंडर से सुरक्षित उतारें और वो अपना काम सुचारू रूप से कर सके. चंद्रयान-2 को भी इसी तरह चन्द्रमा की सतह पर उतारना था लेकिन आख़िरी क्षणों में सभव नहीं हो पाया।



दुनिया भर के 50 फ़ीसदी से भी कम मिशन हैं जो सॉफ्ट लैंडिंग में कामयाब रहे हैं। जो भी अंतरिक्ष विज्ञान को समझते हैं वो ज़रूर भारत के इस प्रयास को प्रोत्साहन देंगे. इसरो का अब बड़ा मिशन गगनयान का है जिसमें अंतरिक्षयात्री को भेजा जाना है.

चंद्रयान -2 मिशन एक अत्यधिक जटिल मिशन है, जो इसरो के पिछले मिशनों की तुलना में एक महत्वपूर्ण तकनीकी छलांग का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें चंद्रमा के बेरोज़गार दक्षिणी ध्रुव का पता लगाने के लिए एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल थे। मिशन को स्थलाकृति, भूकंप विज्ञान, खनिज पहचान और वितरण, सतह रासायनिक संरचना, शीर्ष मिट्टी की थर्मो-भौतिक विशेषताओं और कमजोर चंद्र वातावरण की संरचना के विस्तृत अध्ययन के माध्यम से चंद्र वैज्ञानिक ज्ञान का विस्तार करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

चंद्रयान -2 के इंजेक्शन के बाद, इसकी कक्षा को ऊपर उठाने के लिए कई युद्धाभ्यास किए गए और 14 अगस्त, 2019 को ट्रांस लूनर इंसर्शन टीएलआई युद्धाभ्यास के बाद, अंतरिक्ष यान पृथ्वी की परिक्रमा करने से बच गया और एक पथ का अनुसरण किया जो इसे ले गया। चंद्रमा के आसपास। 20 अगस्त 2019 को चंद्रयान-2 को सफलतापूर्वक चंद्र कक्षा में स्थापित किया गया। 100 किमी चंद्र ध्रुवीय कक्षा में चंद्रमा की परिक्रमा करते हुए 02 सितंबर 2019 को विक्रम लैंडर को लैंडिंग की तैयारी में ऑर्बिटर से अलग कर दिया गया था। बाद में, विक्रम लैंडर पर दो डी-ऑर्बिट युद्धाभ्यास किए गए ताकि इसकी कक्षा बदल सके और 100 किमी x 35 किमी कक्षा में चंद्रमा की परिक्रमा शुरू कर सके। विक्रम लैंडर का उतरना योजना के अनुसार था और सामान्य प्रदर्शन 2.1 किमी की ऊंचाई तक देखा गया था। इसके बाद लैंडर से ग्राउंड स्टेशनों तक संचार टूट गया।

चंद्रमा के चारों ओर अपनी इच्छित कक्षा में रखा गया ऑर्बिटर अपने आठ अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग करके चंद्रमा के विकास और ध्रुवीय क्षेत्रों में खनिजों और पानी के अणुओं के मानचित्रण की हमारी समझ को समृद्ध करेगा। ऑर्बिटर कैमरा अब तक किसी भी चंद्र मिशन में उच्चतम रिज़ॉल्यूशन वाला कैमरा 0.3 मीटर है और यह उच्च रिज़ॉल्यूशन की छवियां प्रदान करेगा जो वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय के लिए बेहद उपयोगी होगी। सटीक प्रक्षेपण और मिशन प्रबंधन ने नियोजित एक वर्ष के बजाय लगभग सात वर्षों का लंबा जीवन सुनिश्चित किया है।

क्या है हार्ड लैंडिंग?
चांद पर किसी स्पेसक्राफ्ट की लैंडिंग दो तरीके से होती है- सॉफ्ट लैंडिंग और हार्ड लैंडिंग. जब स्पेसक्राफ्ट की गति को धीरे-धीरे कम करके चांद की सतह पर उतारा जाता है तो उसे सॉफ्ट लैंडिंग कहते हैं जबकि हार्ड लैंडिंग में स्पेसक्राफ्ट चांद की सतह पर क्रैश करता है.

सॉफ्ट लैन्डिंग का मतलब होता है कि आप किसी भी सैटलाइट को किसी लैंडर से सुरक्षित उतारें और वो अपना काम सुचारू रूप से कर सके.

अगर सब कुछ ठीक रहता और विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग होती तो भारत दुनिया का पहला देश बन जाता जिसका अंतरिक्षयान चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव के क़रीब उतरता.

अब तक अमरीका, रूस और चीन को ही चांद की सतह पर सॉफ्ट लैन्डिंग में सफलता मिली है. हालांकि ये तीन देश अब तक दक्षिण ध्रुव पर नहीं उतरे हैं.

ऑर्बिटर से उम्मीदें
भले ही विक्रम लैंडर सफलतापूर्वक चांद की सतह पर उतरने में कामयाब नहीं रहा लेकिन ऑर्बिटर चांद की कक्षा में अपना काम कर रहा है. 2,379 किलो वजन के ऑर्बिटर की मिशन लाइफ एक साल की है और यह 100 किलोमीटर की दूरी से चांद की परिक्रमा कर रहा है.

चंद्रयान-1 की तुलना में चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर ज़्यादा आधुनिक और साइंटिफिक उपकरणों से लैस है और ये अच्छे से काम कर रहे हैं.

चंद्रयान-2 को इस मिशन पर भेजने में 11 साल लगे. विक्रम लैंडर मुख्य रूप से चांद की सतह पर वहां के चट्टानों का विश्लेषण करने वाला था.

विक्रम लैंडर से निकलकर प्रज्ञान रोवर की मदद से चांद की सतह पर पानी की खोज करना इसरो का मुख्य लक्ष्य था.

अब जबकि ऑर्बिटर ठीक से काम कर रहा है तो इसका मतलब यह है कि वह आने वाले दिनों में कुछ डेटा ज़रूर भेजेगा, जिसका विश्लेषण कर वैज्ञानिक चांद के बारे में कुछ नई जानकारियां प्राप्त करेंगे.

978 करोड़ रुपये की लागत वाला चंद्रयान-2 मानवरहित अभियान है. इसमें उपग्रह की कीमत 603 करोड़ रुपये जबकि जीएसएलवी एमके III की 375 करोड़ रुपये है.

3,840 किलो वजनी चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर का वजन 1,471 किलो और प्रज्ञान रोवर का वजन 27 किलो है.

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